मेरी तो उस समूह में कुछ भूमिका न थी।
फिर मैं वहाँ था क्यों, ये मुझे सूचना न थी॥
हर व्यक्ति कट गया है अब अपने कुटुंब से,
लोगों के पास पहले ये जीवन-कला न थी॥
चिन्तन फलक था दोहों का नदियों से भी विशाल,
अभिव्यक्ति के लिए कोई ऐसी विधा न थी॥
मुझको समय ने कर ही दिया संप्रदाय मुक्त,
अच्छा हुआ, वो मेरी कोई सम्पदा न थी॥
व्यवहार मेरा सब के लिए स्नेह पूर्ण था,
शायद इसी से मन में कोई भी व्यथा न थी॥
मैं ने तिमिर को दीप की लौ से जला दिया,
पथ में कभी मेरे कोई नीरव निशा न थी॥
मैं ने विपत्तियों में भी हंस-हंस के बात की,
जीवन सुखद हो ऐसी कोई कल्पना न थी॥
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2 comments:
हर व्यक्ति कट गया है अब अपने कुटुंब से,
लोगों के पास पहले ये जीवन-कला न थी॥
is she'r par aankhe barbas baras gayee ... kamaal ki shayari padhne ko mili.. badhaayee sang me nav varsh ki bhi badhaayee
arsh
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