बुधवार, 30 दिसंबर 2009

मेरी तो उस समूह में कुछ भूमिका न थी।

मेरी तो उस समूह में कुछ भूमिका न थी।

फिर मैं वहाँ था क्यों, ये मुझे सूचना न थी॥

हर व्यक्ति कट गया है अब अपने कुटुंब से,

लोगों के पास पहले ये जीवन-कला न थी॥

चिन्तन फलक था दोहों का नदियों से भी विशाल,

अभिव्यक्ति के लिए कोई ऐसी विधा न थी॥

मुझको समय ने कर ही दिया संप्रदाय मुक्त,

अच्छा हुआ, वो मेरी कोई सम्पदा न थी॥

व्यवहार मेरा सब के लिए स्नेह पूर्ण था,

शायद इसी से मन में कोई भी व्यथा न थी॥

मैं ने तिमिर को दीप की लौ से जला दिया,

पथ में कभी मेरे कोई नीरव निशा न थी॥

मैं ने विपत्तियों में भी हंस-हंस के बात की,

जीवन सुखद हो ऐसी कोई कल्पना न थी॥

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1 टिप्पणी:

"अर्श" ने कहा…

हर व्यक्ति कट गया है अब अपने कुटुंब से,

लोगों के पास पहले ये जीवन-कला न थी॥

is she'r par aankhe barbas baras gayee ... kamaal ki shayari padhne ko mili.. badhaayee sang me nav varsh ki bhi badhaayee


arsh