सोमवार, 19 जनवरी 2009

लग जाय कोई दाग़ न दामन समेट लो।

लग जाय कोई दाग़ न दामन समेट लो।

विद्रोह से भरा हुआ चिंतन समेट लो।

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कुछ होश भी है तुमको कड़कती हैं बिजलियाँ,

अच्छा यही है अपना नशेमन समेट लो।

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देखो उमड़ रहा है घटाओं का सिल्सिला,

आँगन में भीग जायेगा ईंधन समेट लो।

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आभास दुख का औरों को होने न दो कभी,

आंखों में तैरता हुआ सावन समेट लो।

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बेटों को जब विदेश में ही मिल रहा हो सुख,

तुम भी ये अपने मोह का बंधन समेट लो।

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सम्भव है आँधियों का न कर पाये सामना,

हल्का बहुत है फूस का छाजन समेट लो।

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1 टिप्पणी:

"अर्श" ने कहा…

क्या साहब एक पे एक बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ने को मिलता है आपके ब्लॉग पे ये ब्लॉग मेरा पसंदीदा है आपका ढेरो बधाई ...

अर्श