रविवार, 18 जनवरी 2009

शान्ति मिल जाती है जब सहमति जताता है विपक्ष.

शान्ति मिल जाती है जब सहमति जताता है विपक्ष.
सोचता कोई नहीं. क्यों मुस्कुराता है विपक्ष.
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पहले मीठी-मीठी बातों से किया करता है खुश,
आक्रामक बनके फिर बिजली गिराता है विपक्ष.
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कोई भी ऐसा नहीं अच्छा लगे जिसको विरोध,
टूटता है धैर्य, जब तेवर दिखाता है विपक्ष.
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ध्यान से देखें तो इसमें ख़ुद हमारा लाभ है,
टिपण्णी करके हमें फिर से जगाता है विपक्ष।

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पक्षधर हो जाएँ हम चाहे किसी सिद्धांत के,
मन के भीतर कुछ टहोके से लगाता है विपक्ष.
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3 टिप्‍पणियां:

गौतम राजऋषि ने कहा…

ध्यान से देखें तो इसमें ख़ुद हमारा लाभ है,
टिपण्णी करके हमें जब भी जगाता विपक्ष.

क्या खूब सर...

एक अनुरोध था कि एक पोस्ट को कम-से-कम तीन-चार दिन तक रहनें दे,फिर नयी गज़ल लगायें.जबतक मैं अपने दोस्तों को बता पाता हूं इन अनूठी गज़लों के बारे में कि नयी गज़ल आ जाती है.
शुक्रिया.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

ग़ज़ल में ताजगी लगती है जो इसे आम ग़ज़लों से अलग करती है...बहुत अच्छी लगा ये प्रयास...बधाई
नीरज

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

'पक्षधर हो जाएँ हम्…।'
बहुत ख़ूब! सत्य absolute होता भी कहां है?