दिल था ख़लीजे-ग़म की तरक़्क़ी से बेख़बर ।
आँखें थी चश्मे-दिल की ख़राबी से बेख़बर ॥
मैं तारे-अन्कुबूत के घेरों में आ गया,
तारीकियों में लिप्टी हवेली से बे ख़बर ॥
वैसे मैं अपनी ज़ात से बेज़ार तो नहीं,
फिरता हूं कूचा-कूचा मगर जी से बे ख़बर ॥
उसके जमालियात की जहतें न खुल सकीं,
तारे-निगह था शोला-परस्ती से बेख़बर ॥
इस क़ैदो-बन्दे इश्क़ से आज़ाद कौन है,
ख़ुद ये सुपुरदगी है रिहाई से बे ख़बर ॥
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