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रविवार, 24 अगस्त 2008

फूल का लाल होना / शैलेश ज़ैदी

मेरे आँगन में जो फूल खिला है
उसका रंग लाल है.
मैं रोज़ सुबह उसे देखता हूँ
वह कभी नहीं मुरझाता
सूरज की किरणें उसे और भी चमका देती हैं
रात उसकी सुर्खी को
अपने अंधेरों में डुबो नहीं पाती.

उसका दहकता लाल रंग
प्रतिकूल परिस्थितियों में
और भी दहकने लागता है
फूल का लाल होना
फूल का स्वभाव नहीं है
मेरी ज़रूरत है.

मैं फूल को हमेशा लाल ही देखता हूँ
मेरे आँगन में जो फूल खिला है
वह अगर मेरे आँगन में न भी होता
तो भी लाल होता
हर वह आँगन जहाँ कोई फूल खिलता है
मेरा अपना आँगन होता है
और मेरा आँगन
मेरे भीतर कहीं दूर-दूर तक फैला हुआ है.
रात मेरे आँगन में उतरने से डरती है
और अगर कभ उतर भी आए
तो मैं उसे एक काला चमकदार पत्थर समझूंगा
अपने ढंग से तराशूंगा
और अपने आँगन के उजले फर्श में
संग-मर्मर में जडी लिखावट की तरह
अक्षर-अक्षर जड़ दूंगा
ताकि रात कैदी बनी रहे
ताकि मेरे आँगन का सुर्ख-सफ़ेद चेहरा
और भी धारदार हो जाय.

ताकि लोग जान लें
की फूल का रंग चाहे जैसा भी हो
सिर्फ़ लाल होता है
और फूल का लाल होना
फूल का स्वभाव नहीं है
मेरी ज़रूरत है.
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