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मंगलवार, 4 मार्च 2008

सूरदास के रूहानी नगमे

इस शीर्षक से सूरदास के चुने हुए एकसौ एक पदों का आज की भाषा में पद्यानुवाद शैलेश जैदी ने किया है जो पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुका है. हिन्दी की कई संस्थाओं ने इसे सम्मानित और पुरस्कृत भी किया है। यहाँ पाठकों की रूचि के लिए प्रस्तुत है एक पद।
सूरदास का मूल पद
प्रभू! जी मोरे औगुन चित न धरौ ।
सम दरसी है नाम तुम्हारौ , सोई पार करौ ॥
इक लोहा पूजा मैं राखत , इक घर बधिक परौ ॥
सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ ॥
इक नदिया इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ ॥
जब मिलिगे तब एक बरन ह्वै, गंगा नाम परौ ॥
तन माया जिव ब्रह्म कहावत, सूर सु मिलि बिगरौ॥
कै इनकौ निर्धार कीजिये, कै प्रन जात टरौ ॥
पद्यानुवाद
यारब मेरी खताओं पे मत कीजियो निगाह ।
यकसां सभी को चाहते हैं आप या इलाह ॥
औरों के साथ बख्शियो मेरे भी सब गुनाह ॥
इक लोहा वो है रखते हैं पूजा में सब जिसे ॥
इक लोहा वो भी है जिसे दुनिया छुरी कहे ॥
पारस ये फर्क करना नहीं जनता कभी ॥
सोना बनाके दोनों को करता है कीमती ॥
पानी है वो भी जो है नदी में रवां दवां॥
पानी ही गंदे नालों में लेता है हिचकियाँ ॥
दरिया में जाके दोनों ही दर्या-सिफत हुए ॥
गंगा का नाम पा गए गंगा सिफत हुए ॥
जिसमे बशर को कहते हैं फानी तमाम लोग ॥
पर रूह को हैं देते बका का मुकाम लोग ॥
ऐ सूर कीजिये भी खुदारा ये फैसला ॥
इक साथ रहके दोनों हैं कैसे जुदा जुदा ॥
बिगड़े कहीं न बात मसावात के बगैर ॥
रहमत पे आंच आए न यारब हो सबकी खैर ॥