नज़्म / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / वरक़-वरक़ मेरे ख़्वाबों के लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
नज़्म / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / वरक़-वरक़ मेरे ख़्वाबों के लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 28 अगस्त 2008

वरक़-वरक़ मेरे ख़्वाबों के / ज़ैदी जाफ़र रज़ा

वरक-वरक मेरे ख़्वाबों के ले गई है हवा
पता नहीं उन्हें किन वादियों में डाल आए
शदीद दर्द सा महसूस कर रहा हूँ मैं
बिखर गया हूँ उन अवराक में कहीं मैं भी.
हुदूदे-जिस्म में शायद बचा नहीं मैं भी.

वो घर कि जिस में लताफत की जलतरंग बजे
मिलाये ताल तबस्सुम हया के नगमों से
सितार छेड़ रही हों शराफतें कुछ यूँ
कि हमनावाई के आहंग उभरें साजों से
वो घर भी ख़्वाबों के अवराक में रहा होगा
पढ़ा जो होगा किसी ने तो हंस दिया होगा

वो ख्वाब अब मैं दोबारा न देख पाऊंगा
कि मुझमें ख्वाबों के अब देखने की ताब नहीं
बनाना चाहता फिर ज़िन्दगी अजाब नहीं
कि फिर हवा कोई आकर उन्हें उडा देगी
कि फिर मैं दर्द की शिद्दत से टूट जाऊँगा.
******************