नज़्म / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / ऐसे जांबाजों को करता हूँ सलाम. लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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गुरुवार, 27 नवंबर 2008

ऐसे जांबाजों को करता हूँ सलाम.

वो सही मानों में जांबाज़ थे
जाँ अपनी गँवा बैठे फ़राइज़ के लिए,
ज़िन्दगी ने किया झुक-झुक के सलाम
मौत ने उनकी जवांमर्दी के क़दमों पे
गिराया ख़ुद को
और पाकीज़ा फ़राइज़ के कई बोसे लिए.
कूवतें देती रही मुल्क की तहज़ीब उन्हें,
नापसंदीदा हमेशा से थी तखरीब उन्हें,
उनमें था हौसला,
वो जानते थे क्या है वतन की इज़्ज़त.
खूँ में थी उनके रवां गंगो-जमन की इज़्ज़त.
उनको मालूम था
इक खेल सियासत का है दहशत-गर्दी.
लाज़मी है कि कुचल दें उसको,
मौत से अपनी मसल दें उसको.
बस यही सोच के वो
आसमाँ छूती हुई आग में भी कूद पड़े,
साँस जबतक थी लड़े, खूब लड़े.
ऐसे जांबाजों को करता हूँ सलाम.
इनसे रौशन है मेरे मुल्क का नाम.
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