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बुधवार, 3 सितंबर 2008

रोशनी का खेल मत खेलो / नोशी गीलानी

तुम्हें पहले कहा भी था
कि हमसे रोशनी का खेल मत खेलो
हमें इस तीरगी से निस्बतें इतनी पुरानी हैं
कि तुम भी हार जाओगे
सो अब देखो ! तुम्हारे हाथ खाली हैं
अब इनके लम्से-ताज़ा में
हमारे नाम का कोई सितारा भी नहीं है।

तुम्हारी चश्मे-नाज़ाँ में
कभी जो इश्क़ की वारफ्तगी के
इतने जुगनू झिलमिलाये थे
वो अपने रक्स की तकमील के पहले ही लम्हे में
कमाले-बेनियाज़ी से अचानक बुझ गए हैं।

तुम्हारी गुफ्तुगू में सच के रंगों की
जो इक क़ौसो-क़ज़ा सी मुस्कुराई थी
बहोत नामेहरबाँ खामोशियों के
बादलों में छुप गई है।

हमारे दरमियाँ ठहरी हुई शब की उदासी में
किसी हरफे-दुआ का इक शरारा भी नहीं है।

तुम्हारे लम्स की हैरान करती नर्म बारिश ने
हवा के रेशमी आँचल पे जो
हलकी गुलाबी आयातों जैसे महकते गीत लिक्खे थे
अब उनमे वस्ल खुशबू का इशारा भी नहीं है।
तुम्हारे दामने-दिल में
वफ़ा का इक सुनहरा इस्तेआरा भी नहीं है।

ज़रा देखो ! तुम्हारे हाथ खाली हैं
अब इनके लम्से-ताज़ा में
हमारे नाम का कोई सितारा भी नहीं है।
तुम्हें पहले कहा भी था
कि हमसे रोशनी का खेल मत खेलो।
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