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मंगलवार, 2 सितंबर 2008

थोडी देर मुझे जलने दो / साधुशरण वर्मा

पुरवैया के मस्त झकोरों ! थोडी देर मुझे बहने दो.
अरे गगन के मंजु प्रदीपो, थोडी देर मुझे जलने दो.

तुम तो जग को जन्म-जन्म से, आलोकित करते ही आये.
नील गगन में और न जाने, कितने जनम रहोगे छाये
जीवन की है आज दिवाली, फैली मन की मादक लाली
मुझको श्वासों की बाती से, दीपित प्राण कथा कहने दो.

ओ पूनम के चाँद तुम्हें तो, सदा इसी पथ पर चलना है
लहर जगाकर उदित हुए तुम, स्वप्न सजाकर ही ढलना है.
छोटा सा जीवन पथ मेरा, चले चार पग हुआ सवेरा,
सपनों की मादक बेला में, थोडी देर मुझे ढलने दो.

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