ख़ुदा का पहिया
मुहब्बत आमेज़ मुस्कुराहट के साथ मुझसे
ख़ुदा ने पूछा था
चन्द लमहों को तुम ख़ुदा बन के
इस जहाँ को चलाना चाहोगे ?
मैंने “हाँ ठीक है मैं कोशिश करूंगा” कहकर
ख़ुदा से पूछा था
“किस जगह बैठना है ?
तनख़्वाह क्या मिलेगी ?
रहेंगे अवक़ात लच के क्या ?
मिलेगी कब काम से फ़राग़त ?
ख़ुदा ने मुझसे कहा
के “लौटा दो मेरा पहिया,
समझ गया मैं
के तुम अभी अच्छी तर्ह
तैयार ही नहीं हो।"
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