ग़ज़ल : ज़ैदी जाफ़र रज़ा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ग़ज़ल : ज़ैदी जाफ़र रज़ा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 14 दिसंबर 2008

बादलो ठहरो ! हमें कहना है तुमसे दिल की बात.

बादलो ठहरो ! हमें कहना है तुमसे दिल की बात.
कुछ समंदर की कहानी और कुछ साहिल की बात.
*******
मैं उफक पर देखता हूँ सारी बातें साफ़-साफ़,
मैं समझता था रहेगी राज़ उस महफ़िल की बात.
*******
आजकल जालिम भी होते हैं बज़ाहिर पुर-खुलूस,
दोस्तों के ही लबो-लहजे में थी क़ातिल की बात.
*******
तजरुबे से ही समझ सकता है कोई ज़िन्दगी,
रखती थी गहराइयां उस गाँव के जाहिल की बात.
*******
कर दिया बेदार सुबहों ने सभी को ख्वाब से,
फिरभी वो सोता रहा क्या कीजिये गाफ़िल की बात.
*******
वो समर्क़न्दो-बुखारा तक खुशी से दे गया,
आ गई उस खुश-अदा माशूक के जब तिल की बात.
*******
इल्म का इज़हार लायानी है कम-इल्मों के बीच,
कितनी मानी-खेज़ है उस सूफ़िए-कामिल की बात.
*******
कुछ तकल्लुफ भी है कुछ कहना भी है वो चाहता,
क्या करे, उसके लिए है आ पड़ी, मुश्किल की बात.
*******
हम थे हक़ पर, हमसे दुनिया ने किया है इत्तेफ़ाक,
वो हुआ रुसवा हुई उर्यां जब उस बातिल की बात.
**************