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सोमवार, 3 नवंबर 2008

हर बात हम सुनेंगे अगर ज़ाब्ते में हो.

हर बात हम सुनेंगे अगर ज़ाब्ते में हो.
छींटा-कशी से दूर हो, सबके भले में हो.
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गाहे-बगाहे देखो गरीबां में झाँक कर,
महसूस ख़ुद करोगे बहोत फ़ायदे में हो.
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यलगार जो करेगा वो खायेगा ज़ख्म भी,
बेहतर ये है कि हर कोई अपने क़िले में हो.
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ना-आशना हो मंज़िले-मक़सूद से अभी,
बढ़-बढ़ के यूँ न बोलो अभी रास्ते में हो.
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गैरों में करते रहते हो क्यों खामियां तलाश,
सोचो ज़रा कि ख़ुद भी उसी कठघरे में हो.
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अल्फाज़ लड़खड़ाते हैं,लगज़िश है फ़िक्र में,
लगता है आज पूरी तरह तुम नशे में हो.
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ज़ाब्ते=संयम, गाहे-ब-गाहे= कभी-कभी, यलगार=आक्रमण, ना-आशना=अपरिचित, मंज़िले-मक़सूद=अभीष्ट गंतव्य,