ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / हमें अपने पड़ोसी से लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

हमें अपने पड़ोसी से शिकायत बेसबब क्यों हो.

हमें अपने पड़ोसी से शिकायत बेसबब क्यों हो.
मिले वो प्यार से तो दिल में नफ़रत बेसबब क्यों हो.
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ये दहशत-गर्दियाँ उसके अगर क़ाबू से बाहर हैं,
तो उसके साथ कोई भी मुरौवत बेसबब क्यों हो.
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हमें तक़सीम जो कर दें वो रहबर हो नहीं सकते,
हमें उन रहबरों से फिर अकीदत बेसबब क्यों हो.
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न काम आयीं किसी लमहा करिश्मा-साज़ियाँ उसकी,
वो ऐसा हो न गर, उससे बगावत बेसबब क्यों हो.
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न हो कुछ भी अगर उस दिलरुबा, गुंचा-दहन बुत में,
सभी की उसपे यूँ मायल तबीयत बेसबब क्यों हो.
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नवाजिश बे-गरज करता नहीं इस दौर में कोई,
तो फिर ये आपकी चश्मे-इनायत बेसबब क्यों हो.
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