रह गयीं बिछी आँखें, और तुम नहीं आये.
मुज़महिल हुईं यादें, और तुम नहीं आये.
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उसके मांग की अफ़्शां, चाँद की हथेली पर,
रख के सो गयीं किरनें, और तुम नहीं आये.
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ख़त तुम्हारे पढ़-पढ़ कर, चाँदनी भी रोई थी,
नम थीं रात की पलकें, और तुम नहीं आये.
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धूप हो के आँगन से छत पे जाके बैठी थी,
कोई भी न था घर में, और तुम नहीं आये.
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टुकड़े-टुकड़े हो-हो कर, चुभ रही थीं सीने में,
इंतज़ार की किरचें, और तुम नहीं आये.
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नीम पर लटकते हैं, अब भी सावनी झूले,
जा रही हैं बरसातें, और तुम नहीं आये.
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गुरुवार, 20 नवंबर 2008
रह गयीं बिछी आँखें, और तुम नहीं आये.
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