अमीर खुसरो की बेहद मशहूर ग़ज़ल है- "ज़ेहाले-मिस्कीं मकुन तगाफुल, दुराये नैनां बनाए बतियाँ."इसी ज़मीन में इस अजीम सूफी शायर से ख़ास अकीदत रखते हुए चन्द अश'आर अर्ज़ किए थे जिन्हें पेश कर रहा हूँ [ज़ैदी जाफ़र रज़ा]
मैं अपनी आंखों की रोशनाई से उसको लिखती हूँ रोज़ पतियाँ।
हरेक लम्हा उसी में गुम हूँ, उसी का दिन है उसी की रतियाँ।
यकीन है वो ज़रूर पिघलेगा, एक दिन हाल पर हमारे,
न रोक पायेगा अपने आंसू, वो देखेगा जब हमारी गतियाँ।
न जाने कितने ख़याल दिल में, हज़ार करवट बदल रहे हैं,
मैं उससे आख़िर कहूँगी क्या जब, वो मुझसे मिलकर करेगा बतियाँ।
मैं उसके हमराह खुलके सावन में पेंग झूले की ले रही थी,
मैं देखती थी कि डाह से भुन रही हैं मेरी सभी सवतियाँ।
मैं उसके घर से चली थी जिसदम, लिपट के मुझसे कहा था उसने,
अकेले मत जाओ रास्ते में, छुपे हैं दुश्मन लगाए घतियाँ।
मुझे है डर उसके सामने भी, कहीं लहू आँख से न टपके,
जो राज़ दिल में है खुल न जाए, हमारी मारी गई हैं मतियाँ।
सजाके फूलों की सेज कबसे, मैं रास्ता उसका तक रही हूँ,
मुझे यकीं है वो आके भर लेगा बाजुओं में लगाके छतियाँ।
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उपर्युक्त ग़ज़ल को पढ़ने के बाद हमारे पास इसी ज़मीन में प्लेंसबोरो यूनाईटेड स्टेट्स से अनूप भार्गव जी ने आलोक श्रीवास्तव की एक गजल भेजी है. हम आभार सहित उसे यहाँ पोस्ट कर रहे हैं-युग-विमर्श.
सखी पिया को जो मैं न देखूं / आलोक श्रीवास्तव
सखी पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां,
कि जिनमें उनकी ही रोशनी हो , कहीं से ला दो मुझे वो अंखियां।
दिलों की बातें दिलों के अंदर, ज़रा-सी ज़िद से दबी हुई हैं,
वो सुनना चाहें ज़ुबां से सब कुछ , मैं करना चाहूं नज़र से बतियां।
ये इश्क़ क्या है , ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है,
सुलगती सांसे , तरसती आंखें, मचलती रूहें, धड़कती छतियां।
उन्हीं की आंखें , उन्हीं का जादू, उन्हीं की हस्ती, उन्हीं की ख़ुश्बू,
किसी भी धुन में रमाऊं जियरा , किसी दरस में पिरोलूं अंखियां।
मैं कैसे मानूं बरसते नैनो, कि तुमने देखा है पी को आते ,
न काग बोले , न मोर नाचे, न कूकी कोयल, न चटखीं कलियां।
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