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बुधवार, 15 अक्तूबर 2008

बारिश हुई तो घर की बिज़ाअत सिमट गई

बारिश हुई तो घर की बिज़ाअत सिमट गई।

हालात के संवरने की उम्मीद घट गई।

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खिड़की पे आके चाँद ने देखा मेरी तरफ़,

मासूम चाँदनी मेरे तन से लिपट गई।

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सिन्फ़े-लतीफ़ ने वो करिश्मा दिखा दिया,

हैराँ थे सब, बिसाते-सियासत उलट गई।

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शायद तअलुक़ात को होना था खुशगवार,

अच्छा हुआ कि बीच से दीवार हट गई।

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मायूस सब थे, बस वो अकेला था मुत्मइन,

कुदरत का खेल देखिये बाज़ी पलट गई।

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औरों की तर्ह वो भी हुआ जबसे शर-पसंद,

उस्की तरफ़ से मेरी तबीयत उचट गई।

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तहजीब ने दिखाए करिश्मे नये-नये,

इन्सां की नस्ल कितने ही टुकडों में बँट गई।

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