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सोमवार, 29 सितंबर 2008

कहीं तुम अपनी किस्मत / सलीम कौसर

कहीं तुम अपनी किस्मत का लिखा तब्दील कर लेते।
तो शायद हम भी अपना रास्ता तब्दील कर लेते।
अगर हम वाकई कम हौसला होते मुहब्बत में,
मरज़ बढ़ने से पहले ही दवा तब्दील कर लेते।
तुम्हारे साथ चलने पर जो दिल राज़ी नहीं होता,
बहोत पहले हम अपना फैसला तब्दील कर लेते।
तुम्हें इन मौसमों की क्या ख़बर मिलती अगर हम भी,
घुटन के खौफ से आबो-हवा तब्दील कर लेते।
तुम्हारी तर्ह जीने का हुनर आता तो फिर शायद,
मकान अपना वही रखते, पता तब्दील कर लेते।
जुदाई भी न होती ज़िन्दगी भी सहल हो जाती,
जो हम इक दूसरे से मसअला तब्दील कर लेते।
हमेशा की तरह इस बार भी हम बोल उठे, वरना,
गवाही देने वाले वाक़या तब्दील कर लेते।
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