बांसुरी की तान में जीवन की व्याख्याएँ मिलीं.
आके जमुना तट पे कुछ मीठी निकटताएँ मिलीं.
मेरे अंतर में तो बस गोकुल की छवियाँ थीं मुखर,
जब जहां झाँका मुझे कान्हा की लीलाएँ मिलीं.
राधिका बरसाने में जबतक थीं सब सामान्य था,
जब मिलीं घनश्याम से नूतन मधुरिमाएँ मिलीं.
पांडवों ने सार्थी को चुन लिया, विजयी हुए,
कौरवो ने सैन्य-दल चाहा, विफलताएँ मिलीं.
स्वार्थवश जो युद्ध में कूदे कलंकित हो गए
न्याय पर स्थिर रहे जो उनको गरिमाएँ मिलीं.
लोग कहते हैं हुआ शैलेश ज़ैदी का निधन,
उसके घर कुछ भी न था बस चन्द कविताएँ मिलीं.
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रविवार, 28 जून 2009
बांसुरी की तान में जीवन की व्याख्याएँ मिलीं.
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