ग़ज़ल / शैलेश ज़ैदी / तत्काल कोई बीज भी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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बुधवार, 21 जनवरी 2009

तत्काल कोई बीज भी पौदा नहीं बना.

तत्काल कोई बीज भी पौदा नहीं बना.
दुख क्या अगर प्रयास सफलता नहीं बना.
माना कि लोग उससे न संतुष्ट हो सके,
फिर भी वो इस समाज की कुंठा नहीं बना.
वो है सुखी कि उसके हैं ग्रामीण संस्कार,
वो अपने गाँव-घर में तमाशा नहीं बना.
बारिश भिगो न पायी हो जिसके शरीर को,
कोई पुरूष कबीर के जैसा नहीं बना.
बे पर के भी उडानें ये भरता है रात दिन,
अच्छा हुआ मनुष्य परिन्दा नहीं बना.
श्रद्धा से उसके सामने रहता हूँ मैं नामित,
पर उसके सर के नीचे का तकिया नहीं बना.
कैसा भी हो प्रकाश, है उम्र उसकी मुख्तसर,
स्थायी रह सके, वो उजाला नही बना.
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