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शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2008

नावक अंदाज़ जिधर दीदए-जानां होंगे / मोमिन खां मोमिन [पुरानी शराब]

नावक-अंदाज़ जिधर दीदए-जानां होंगे।
नीम बिस्मिल कई होंगे, कई बेजाँ होंगे।
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ताबे-नज़्ज़ारा नहीं आइना क्या देखने दूँ,
और बन जायेंगे तस्वीर जो हैराँ होंगे।
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तू कहाँ जायेगी कुछ अपना ठिकाना कर ले,
हम तो कल ख्वाबे अदम में शबे-हिज्राँ होंगे।
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फिर बहार आई वही दश्त -नवर्दी होगी,
फिर वही पाँव वही खारे-मुगीलाँ होंगे।
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नासिहा दिल में तू इतना तो समझ अपने कि हम,
लाख नादाँ हुए क्या तुझसे भी नादाँ होंगे।
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एक हम है कि हुए ऐसे पशेमान कि बस,
एक वो हैं कि जिन्हें चाह के अरमाँ होंगे।
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उम्र तो सारी कटी इश्के-बुताँ में'मोमिन,'
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे।
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