ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा /निशाते-दर्दे-पैहम लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा /निशाते-दर्दे-पैहम लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 7 मई 2010

निशाते-दर्दे-पैहम से अलग हैं

निशाते-दर्दे-पैहम से अलग हैं।
ख़ुशी के ज़ाविए ग़म से अलग हैं॥

दिलों को रोते कब देखा किसी ने,
ये आँसू चश्मे-पुरनम से अलग हैं॥

तलातुम-ख़ेज़ियाँ वीरानियों की,
हिसारे-शोरे-मातम से अलग हैं॥

शिकनहाए-जबीने-होश्मन्दाँ,
ख़ुतूते-इस्मे-आज़म से अलग हैं॥

बज़ाहिर साथ रहकर भी मिज़ाजन,
हम उनसे और वो हम से अलग हैं॥

लिखावट कुछ हमारी मुख़्तलिफ़ है,
के हम तहरीरे-मौसम से अलग हैं॥

हमारे ख़्वाब हर दिल पर हैं रौशन,
के ये ताबीरे-मुबहम से अलग हैं॥
**********
निशाते-दर्दे-पैहम=पीड़ा के नैरन्तर्य का आनन्द्।ज़ाविए=कोण्। चश्मे-पुर्नम=भीगी हुई आँखें।तलातुम-ख़ेज़ियाँ=प्लावन की स्थिति। हिसारे-शोरे-मातम=रोने-पीटने के शोर की परिधि।शिकनहाए-जबीने-होशमन्दाँ=सुधीजनों के माथे की लकीरें।ख़ुतूते-इस्मे-आज़म=ईश्वर द्वारा आदम को सिखाए गये महामत्र की लकीरें।मुख़्तलिफ़= भिन्न । तहरीरे-मौसम= मौसम की लिखावट्।ताबीरे-मुबहम=अस्पष्ट स्वप्न फल्।