ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / हमारे घर की दीवारों पे कुछ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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गुरुवार, 28 जनवरी 2010

हमारे घर की दीवारों पे कुछ चेहरे से उगते हैं

हमारे घर की दीवारों पे कुछ चेहरे से उगते हैं ।
न जाने क्यों ये रातों के उतर आने से उगते हैं ॥

वो पौदे जिनके बीजों से नहीं हम आज तक वाक़िफ़,
वो आँगन में हमारे किस क़दर दावे से उगते हैं ॥

कोई भी हादसा होता है जब तो ऐसा लगता है,
हमारे ज़ह्न में ख़दशे बहोत पहले से उगते हैं॥

शजर की तर्ह साया-दार हो जायेंगे कल हम भी,
कहीं अन्दर हमारे कुछ हरे पत्ते से उगते हैं ॥

न जाने कब हमारे दिल ने कोई चोट खाई थी,
तुम अब आये हो तो ये ज़ख़्म भी गहरे से उगते हैं॥
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