ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / देखो ये बातें सच्ची हैं लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

देखो ये बातें सच्ची हैं

देखो ये बातें सच्ची हैं।
तहज़ीबें मिटती रहती हैं॥

सूरज तो बेहिस होता है,
ख़्वाब ज़मीनें ही बुनती हैं॥

चाँद की मिटटी छू कर देखो,
उसकी आँखें भी गीली हैं॥

मुझको कोई ख़ौफ़ नहीं है,
मैं ने मौत से बातें की हैं॥

माँ की मिटटी के बटुए में,
मेरी साँसें तक गिरवी हैं॥

एक समन्दर मुझ में भी है,
जिसकी लहरें जाग रही हैं॥

सोने की चिड़िया के क़िस्से,
कुछ तो सुने हैं कुछ बाक़ी हैं॥
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