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शुक्रवार, 12 मार्च 2010

तजल्लियों के सेहर-आफ़रीं हिसार में हैं

तजल्लियों के सिहर-आफ़रीं हिसार में हैं।
सरापा हम किसी वादीए-एतबार में हैं॥

दुरूने-फ़िक्र किसी तश्नगी का हलक़ा है,
दरे-ख़ुलूस है वा,गोया इन्तेज़ार में हैं॥

निदाए-कूज़ागरे-इश्क़ सुनते रह्ते हैं,
तसन्नुआत से आरी किसी दयार में हैं॥

क़लम मुवर्रिख़े-दिल का रवाँ है सूरते-आब,
वरक़-वरक़ पे निगाहे-सितम-शआर में हैं॥

ख़बर किसे है के यख़-बस्ता राख के नीचे,
सुलगते बुझते हुए हम किसी शरार में हैं॥

कहीं हैं कामराँ नक़्शो-निगारे-दुनिया में,
कहीं इताब-ज़दा ख़ाक के ग़ुबार में हैं॥

वो आबगीना जो टूटा है तेरी महफ़िल में,
हम उसके रौग़नो-रंगे-क़ुसूरवार में हैं॥

उठा रहे हैं बहोत ख़ुद-सुपुर्दगी के मज़े,
हमें है फ़ख़्र के हम तेरे अख़्तियार में हैं॥
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तजल्लियों=अधयात्मज्योति । सेहर-आफ़रीं=चमत्कारिक । हिसार=घेरे । वादीए-एतबार=विश्वसनीय घाटी । दुरूने-फ़िक्र=चिन्तन के भीतर ही भीतर । तश्नगी=प्यास । हलक़ा=परिधि,मडल ।दरे-ख़ुलूस=आत्मीयता का द्वार्।वा=खुला हुआ। निदाए-कूज़ागरे-इश्क़=इश्क़ का कसोरा ब्नाने वाले की आवाज़्।तसन्नुआत से आरी=कृत्रिमता से मुक्त । निगाहे-सितम-शआर=अत्याचार ढाने वाले की दृष्टि=यख़-बस्ता=बर्फ़ जैसी। शरार=चिंगारी।कामराँ=सफल। नक़्शो-निगार=बेल-बूटे। इताब-ज़दा=शापग्रस्त। आबगीना=बारीक शीशे की बोतल। रौग़नो-रंग=रंग और पालिश्।ख़ुद-सुपुर्दगी=समर्पण्। फ़ख़्र=गर्व॥अख़्तियार=अधिकार्।