ज़िन्दगी ने इस तरह छेड़ा है साज़े-रोज़ो-शब ।
कारे-दुनिया ने मिटया इम्तियाज़े-रोज़ो-शब ।।
हो गया अब गाँव के तालाब का पानी भी ख़ुश्क,
झुन्ड चिड़ियों का बताये क्या फ़राज़े-रोज़ो-शब ।।
कश्तियाँ ग़र्क़ाब हो जाने का सदमा कम नहीं ,
हो गया ग़र्क़ाब क्यों सोज़ो-गुदाज़े-रोज़ो-शब ।।
रात दिन यकसाँ गुज़रती हो जब अपनी ज़िन्दगी,
कोई समझाये मुझे क्या है जवाज़े-रोज़ो-शब ।।
बेसुरे नग़्मों को सुनते-सुनते जी उकता गया,
काश कोई तोड़ देता बढ़ के साज़े-रोज़ो-शब ।।
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