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मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

घने कुहरे में बीनाई भी हो जाती है लायानी / گھنے کہرے میں بِینائی بھی ہو جاتی ہے لا یعنی

घने कुहरे में बीनाई भी हो जाती है लायानी।
मुसीबत में पज़ीराई भी हो जाती है लायानी॥
निशाने-मंज़िले-जानाँ की जानिब जब मैं बढ़ता हूं,
मेरे नज़दीक रुस्वाई भी हो जाती है लायानी॥
फ़रावानी अगर दौलत की हो फिर सोचना क्या है,
ज़माना-सोज़ महँगाई भी हो जाती है लायानी॥
अगर मक़्सद न हो पेशे-नज़र, हर जेह्द ला-हासिल,
हमारी कोह-पैमाई भी हो जाती है लायानी॥
जहाँ तश्नालबी ख़ंजर की ज़द पर मुस्कुराती हो,
वहाँ ज़ख़्मों की गहराई भी हो जाती है लायानी॥
हमारे सामने ले देख ले ऐ क़ूवते-बातिल,
तेरी मग़रूर अँगड़ाई भी हो जाती है लायानी॥
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گھنے کہرے میں بِینائی بھی ہو جاتی ہے لا یعنی
مصیبت میں پزیرائی بھی ہو جاتی ہے لا یعنی
نشان منزل جاناں کی جانب جب میں بڑھتا ہوں
مرے نزدیک رسوائی بھی ہو جاتی ہے لا یعنی
فراوانی اگر دولت کی ہو پھر سوچنا کیا ہے
زمانہ سوز مہنگا ئی بھی ہو جاتی ہے لا یعنی
اگرمقصد نہ ہو پیش نظرہر جہد لا حاصل
ہماری کوہ پیمائی بھی ہو جاتی ہے لا یعنی
جہاں تشنہ لبی خنجرکی زد پرمسکراتی ہو
وہاں زخموں کی گہرائی بھی ہو جاتی ہے لا یعنی
ہمارے سامنے لے دیکھ لے اے قوت باطل
تری مغرور انگڑائی بھی ہو جاتی ہے لا یعنی
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बीनाई=देखने की शक्ति ।लायानी=अर्थहीन ।पज़ीराई=प्रशंसात्मक स्वीकृति ।निशाने-मज़िले-जानाँ=प्रियतम की मंज़िल के निशान ।रुस्वाई=बदनामी ।फ़रावानी=बहुतायत ।ज़माना-सोज़=ज़माने को जला देने वाली ।जेह्द=प्रयास ।लाहासिल=व्यर्थ ।कोह-पैमाई=पहाड़ों को नापना ।तश्नालबी=प्यास ।क़ूवते-बातिल=असत्य शक्ति ।मग़रूर=घमण्डी ।