खेतों को सींचता रहा मैं रात रात भर ।
हासिल हुवा मगर न मुझे कुछ हयात भर्॥
गो तू बहोत क़रीब न आया मेरे कभी ,
था बाइसे-सुकून तेरा इल्तेफ़ात भर ॥
तेरी ही धड़कनों से है ज़र्रात में हयात,
तनवीर है तेरी ही फ़क़त, कायनात भर्॥
पहचान कब हुई मुझे तेरे वुजूद की ,
थी सामने हमेशा मेरी अपनी ज़ात भर ॥
क़ादिर है तू के तुझ को हैं सारे ही अख्तियार,
ज़िन्दा रहूं मैं, मुझ में कुछ ऐसे सिफ़ात भर ॥
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