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शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

जनवरी 2010 की दो विदेशी ग़ज़लें / 1

अस्लम इमादी / कुवैत
सुन्दर लहजा मीठे बोल, अनोखी बातें ।
हमने सुना है यू होती हैं तेरी बातें ॥

इसी तलब में हम भी तेरी बज़्म में आये,
हम भी सुन लें ख़ुशबू जैसी महकती बातें॥

शायद हम पर खुल जाये वो नूर दरीचा,
धुल जायें सब गर्द-आलूद अँधेरी बातें॥

कौन भला हम दुख वालों का हाल सुनेगा,
रूखी रूखी, बे-लज़्ज़त सी, फीकी बातें ॥

हमको तो इज़हारे-दुरूं से ही मतलब था,
अस्लम क्यों करते फिर सोची समझी बातें ॥

ज़ुबैर फ़ारूक़ी / अबूधाबी
दिल मेरा पछतावे की ज़ंजीर में उल्झा रहा ।
मैं ग़मे-माज़ी की इक तस्वीर में उल्झा रहा॥

झूट पर वो झूट बोला सच बनाने के लिए,
हर घड़ी, हर वक़्त वो तक़रीर में उल्झा रहा॥

ख़्वाब तो बस ख़्वाब है, उस की हक़ीक़त कुछ नहीं,
दिल ही पागल था सदा ताबीर में उल्झा रहा॥

उसके मेरे बीच हायल ही रहा इज्ज़े-बयाँ,
वो अधूरी बात की तामीर में उल्झा रहा॥

जो लिखा करती थी सतहे-आब पर हर दम हवा
रात-दिन फ़ारूक़ उस तहरीर में उल्झा रहा॥
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