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रविवार, 19 अक्तूबर 2008

उसे शिकायत है

उसे शिकायत है

कि मेरे भीतर 'मैं' बहुत अधिक है।

वह शायद यह नहीं देख पाया,

कि मेरा यह 'मैं'

केवल मेरा नहीं है,

आपका, उसका, सभी का है।

जब कोई दुस्साहस करके

सबके 'मैं' को समेट लेता है अपने 'मैं' में,

तो असह्य हो जाता है उसके साथ जीवन

और जब

अपने 'मैं' को बाँट देता है कोई

सबके 'मैं' में

तो जन्म लेता है एक विश्वास

मुस्कुराने लगता है घर-आँगन।

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