शुक्रवार, 7 मई 2010

सहूलतें सभी आसाइशों की यकजा हैं

सहूलतें सभी आसाइशों की यकजा हैं।
हमारे बच्चे घरों में भी रह के तनहा हैं॥

तमाम रिश्ते ही आपस के जैसे टूट गये,
तकल्लुफ़ात की बन्दिश में अहले-दुनिया हैं॥

जदीद ज़हनों के सब ज़ाविए हैं रस्म-शिकन,
मगर तनाव के हर मोड़ पर शिकस्ता हैं॥

सज़ाए-मौत का है झेलना बहोत आसाँ,
के मज़िलों के निशानात सब छलावा हैं॥

ज़बानें प्यास से हर एक की हैं निकली हुई,
यक़ीन होते हुए भी के क़ुरबे-दरिया हैं॥

तमाम रास्ते कुछ तंग होते जाते हैं,
मकान सबके ही काग़ज़ पे हस्बे-नक़्शा हैं॥
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सहूलतें=सुविधाएं। आसाइश=सुख-चैन्। यकजा=एकत्र ।तकल्लुफ़ात=औपचारिकताएं ।बन्दिश=बन्धन ।जदीद ज़हनों=आधुनिक मनसिकता। ज़ाविए=कोण्।रस्म-शिकन=परंपरा विरोधी।शिकस्ता=टूटे हुए। यक़ीन= विश्वस्। क़ुरबे-दरिया=दरिया के निकट्अस्बे-नक़्शा=नक़्शे के अनुरूप्।

2 टिप्‍पणियां:

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

वाह ! बहुत सुन्दर ग़ज़ल है !
तमाम रिश्ते ही आपस के जैसे टूट गये,
तकल्लुफ़ात की ख़ोलों में अहले-दुनिया हैं॥
बिलकुल वाजिब बात है

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

बहुत ख़ूब !बिल्कुल सच्चा शेर है ये

सहूलतें सभी आसाइशों की यकजा हैं।
हमारे बच्चे घरों में भी रह के तनहा हैं॥

आज के हालात की हक़ीक़त यही है कि

तमाम रिश्ते ही आपस के जैसे टूट गये,
तकल्लुफ़ात की बन्दिश में अहले-दुनिया हैं॥