युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

सोमवार, 29 जून 2009

ले जाता है ऐ दिल मुझे नाहक़ तू कहाँ और.

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ले जाता है ऐ दिल मुझे नाहक़ तू कहाँ और. गोकुल के सिवा कोई नहीं जाये-अमां और. जमुना का ये तट और ये मुरली के तराने, जी चाता है उम्र गुज़र जाये ...
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रविवार, 28 जून 2009

आमिना के लाल का सौन्दर्य मन को भा गया.

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आमिना के लाल का सौन्दर्य मन को भा गया. रूप का लावन्य मानस के क्षितिज पर छा गया. उसकी लीलाएं अनोखी थीं सभी को था पता, उसकी छवियों पर निछावर स...

श्याम से गर जुड़ा नहीं होता.

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श्याम से गर जुड़ा नहीं होता. दिल किसी काम का नहीं होता. तुमको ऊधव किसी से प्रेम नहीं, वर्ना ये सिलसिला नहीं होता. उस से आँखें अगर नहीं मिलती...
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बांसुरी की तान में जीवन की व्याख्याएँ मिलीं.

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बांसुरी की तान में जीवन की व्याख्याएँ मिलीं. आके जमुना तट पे कुछ मीठी निकटताएँ मिलीं. मेरे अंतर में तो बस गोकुल की छवियाँ थीं मुखर, जब जहां ...
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शनिवार, 27 जून 2009

दरिया की गुहर-खेज़ियाँ कब देती हैं आवाज़.

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दरिया की गुहर-खेज़ियाँ कब देती हैं आवाज़. आँखों में ये जब हों तो अजब देती हैं आवाज़. है तश्ना-लबी चाहे-ज़नखदाँ के सबब से, प्यासी हैं बहोत धड़...

उल्झे क्या तुझ से महज़ थोडी सी तकरार में हम.

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उलझे क्या तुझ से महज़ थोडी सी तकरार में हम. अजनबी बन के फिरे कूचओ-बाज़ार में हम. आहनी तौक़ पिन्हाया गया गर्दन में हमें, और रक्खे गए जिन्दाने-...
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शुक्रवार, 26 जून 2009

सच्चाइयां ज़रा भी बयानात में न थीं.

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सच्चाइयां ज़रा भी बयानात में न थीं. फिर भी वो सामईन के शुबहात में न थीं. पाबंदियां शरीअते-इस्लाम की कहीं, हिन्दोस्ताँ-मिज़ाज रुसूमात में न थी...

अलगनी पर टांग कर कपडे खड़ी थी दोपहर.

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अलगनी पर टांग कर कपडे खड़ी थी दोपहर. आग तन-मन में लगी थी भुन रही थी दोपहर. हो चुकी है अब ये धरती और सूरज के करीब, बस इसी चिंता में पागल सी हु...
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गुरुवार, 25 जून 2009

सुलाने के लिए तारों भरी रातें नहीं आतीं.

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सुलाने के लिए तारों भरी रातें नहीं आतीं. मुझे वातानुकूलित कक्ष में नींदें नहीं आतीं. न जाने कब से सूखे हैं हमारे गाँव के पोखर, नहाने अब वहां...
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भँवरे, तितली, मधुमक्खी सब अपनी धुन में मस्त रहे.

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भँवरे, तितली, मधुमक्खी सब अपनी धुन में मस्त रहे. हम उद्देश्य रहित थे, भटके एकाकी, संत्रस्त रहे. पुरवाई की शीतलता से रहे अपरिचित सारी उम्र, ल...
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