ले जाता है ऐ दिल मुझे नाहक़ तू कहाँ और.
गोकुल के सिवा कोई नहीं जाये-अमां और.
जमुना का ये तट और ये मुरली के तराने,
जी चाता है उम्र गुज़र जाये यहाँ और.
ये इश्क के इज़हार की आज़ादी कहाँ है
इस खित्ते को शायद हैं मिले अर्ज़ो-समाँ और.
हर सम्त कदम्बों के दरख्तों के हैं साये,
मुमकिन ही नहीं होती हो खुश्बूए-जिनाँ और.
सच्चाई के अल्फाज़ हैं दोनों के लबों पर
राधा का बयाँ और है कान्हा का बयाँ और.
इस दिल में अगर श्याम मकीं हो नहीं सकते,
हम फिर से बना लेंगे नया एक मकाँ और.
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युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
bahut hi sahi likha hai yah dil hi hai kaha kaha le kar jata hai......... achchha hai
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