युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

शुभकामना

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होली के सभी रगों में है प्यार की ख़ुश्बू । उत्साह भरे स्नेह की, सत्कार की ख़ुश्बू॥ घुल-मिल के हम आपस में हैं जब खेलते होली, मि लती है हम...
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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

नारीजन्य-अनुभूति की उर्दू कवयित्री शाइस्ता जमाल / शैलेश ज़ैदी

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नारीजन्य-अनुभूति की उर्दू कवयित्री शाइस्ता जमाल शाइस्ता जमाल में शाइस्तगी यानी एक संतुलित गांभीर्य भी है और जमाल यानी सौन्दर्य भी।रूप का आकर...
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हवा है तेज़ बहोत राह चलना मुश्किल है

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हवा है तेज़ बहोत राह चलना मुश्किल है। फ़िज़ा में आग है घर से निकलना मुश्किल है॥ अंधेरे आँखों की पुतली से माँगते हैं जगह, उजालों के लिए पहलू ...
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युग-विमर्श की यात्रा के दो वर्ष

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25 फ़रवरी 2008 को युग-विमर्श ने एक विशेष संक्ल्प के साथ अपनी यात्रा प्रारंभ की थी। आज इस यात्रा के दो वर्ष पूरे हो गये।विगत वर्ष की तुलना म...
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बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

हूं मैं रुस्वा तेरी मरज़ी क्यों है

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हूं मैं रुस्वा तेरी मरज़ी क्यों है। फिर ये इज़्ज़त हमें बख़्शी क्यों है॥ ख़त्म होती नहीं कितना भी पढें, दास्ताँ उम्र की लम्बी क्यों है॥ किस ...
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ज़िन्दगी दी है तो ख़ुश रहना है

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ज़िन्दगी दी है तो ख़ुश रहना है। तेरी मरज़ी है तो ख़ुश रहना है॥ कभी तनहा नहीं करता महसूस, साथ तू भी है तो ख़ुश रहना है॥ सख़्त-दिल होता तो शि...
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मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

इस तर्ह इस जहाँ ने बनाया मकीं हमें

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इस तर्ह इस जहाँ ने बनाया मकीं हमें। हम हैं सफ़र में इसकी ख़बर तक नहीं हमें॥ करते हैं ख़्वहिशात के तामीर क्यों महल, रहने को सिर्फ़ चाहिए दो ग...
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पाँव में गरदिश है रुकना है मुहाल्

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पाँव में गरदिश है रुकना है मुहाल्। पर सफ़र हो जाये पूरा है मुहाल॥ हो चुका है दिल से वो बेहद क़रीब, खींचना अब उसका ख़ाका है मुहाल्॥ रहगुज़ारे...
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सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

दर्द गहरा हुआ, क़हक़हे बढ गये

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दर्द गहरा हुआ, क़हक़हे बढ गये। खोखलेपन के सब सिल्सिले बढ गये॥ इश्क़ की ये ज़मीनी रविश देखिए, हुस्न बेज़ार है, मन चले बढ गये॥ जब घरों में भी ...
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मैं मुसाफ़िर हूं ठहरने के लिए वक़्त कहाँ

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मैं मुसाफ़िर हूं ठहरने के लिए वक़्त कहाँ। इस बियाबान में मरने के लिए वक़्त कहाँ॥ सारा सहरा है मेरे साथ सफ़र में मसरूफ़, शह्र से हो के गुज़रन...
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