युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

बुधवार, 31 दिसंबर 2008

ये दुआएं भी हैं साधना.

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सब विगत वर्ष भी , दे रहे थे नए वर्ष की सबको शुभकामना. वर्ष आया खिसक भी गया थोडी उपलब्धियां भी हुईं, किंतु जनता उसी तर्ह पिसती रही, मार महंगा...
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रात आई है बलाओं से रिहाई देगी / मसऊद अनवर

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रात आई है बलाओं से रिहाई देगी। अब न दीवार न ज़ंजीर दिखायी देगी। वक़्त गुज़रा है, पे मौसम नहीं बदला यारो, ऐसी गर्दिश है ज़मीं ख़ुद भी दुहाई दे...
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इष्ट देवों को बिठाकर स्वर्ण सिंहासन पे आज.

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इष्ट देवों को बिठाकर स्वर्ण सिंहासन पे आज. करते हैं श्रद्धा प्रर्दशित लोग काले धन पे आज. ******* कल्पनाओं से परे हैं राजनीतिक दाव-पेच, बनती...
मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

लिप्त हैं लोग सिंहासनों में.

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लिप्त हैं लोग सिंहासनों में. कौन आयेगा पीड़ित जनों में. ******* राजनीतिक नहीं उसकी चिंता, उसका चिंतन है कब बंधनों में. ******* कक्ष से अपने ...
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क़ौल का जिस शख्स के मुत्लक़ भरोसा ही न हो.

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क़ौल का जिस शख्स के मुत्लक़ भरोसा ही न हो. है यही बेहतर कि उस से कोई रिश्ता ही न हो. ******* किस क़दर जाँसोज़ो-हैरत-खेज़ था वो हादसा, उसने इस पह...
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सोमवार, 29 दिसंबर 2008

ये खलिश कैसी है क्यों क़ल्ब तड़पता सा लगे.

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ये खलिश कैसी है क्यों क़ल्ब तड़पता सा लगे. सामने बैठा हुआ शख्स कुछ अपना सा लगे. ******* जानता हूँ मैं कभी उससे कहीं भी न मिला, बात फिर क्या ...
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रविवार, 28 दिसंबर 2008

वो अगर सुन सके मेरी कुछ इल्तिजा,

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वो अगर सुन सके मेरी कुछ इल्तिजा, मैं समंदर से गहराइयां मांग लूँ. / क़ल्ब की वुसअतें, ज़ह्ने-संजीदा की सब-की-सब मोतबर खूबियाँ मांग लूँ. ******...
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धर्म, भाषा, वेश-भूषा है अलग क्या कीजिये.

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धर्म, भाषा, वेश-भूषा है अलग, क्या कीजिये. सबकी अपनी-अपनी कुंठा है अलग, क्या कीजिये. ******* यह असंभव है कि हम पहुंचें किसी निष्कर्ष पर, मेरा...
शनिवार, 27 दिसंबर 2008

कुछ उथल-पुथल भरी सभी की बात है.

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कुछ उथल-पुथल भरी सभी की बात है. हर तरफ़ ये कैसी खलबली की बात है. ******* मैं अकेला जा रहा था सूनी राह पर, तुम भी साथ आ गए खुशी की बात है. **...
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गुनगुनी धूप के नर्म स्पर्श से,

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* गुनगुनी धूप के नर्म स्पर्श से, ज़िन्दगी गुनगुनाती सी लगने लगे. / ऐसे में तुम भी आकर जो बैठो यहाँ, मौत भी मुझको अच्छी सी लगने लगे. * तुमने ...
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