शनिवार, 27 दिसंबर 2008

कुछ उथल-पुथल भरी सभी की बात है.

कुछ उथल-पुथल भरी सभी की बात है.
हर तरफ़ ये कैसी खलबली की बात है.
*******
मैं अकेला जा रहा था सूनी राह पर,
तुम भी साथ आ गए खुशी की बात है.
*******
अपने-अपने आसमान सब ने चुन लिए,
मैं हूँ चुप, क्षितिज से दोस्ती की बात है.
*******
सोचता हूँ जाके मैं वहाँ करूँगा क्या,
मयकदों में सिर्फ़ मयकशी की बात है.
*******
सामने मेरे जलाये जा रहे थे घर,
और मैं विवश था आज ही की बात है.
*******
उन कबूतरों के पर कतर दिए गए.
जिनकी हर उड़ान ज़िन्दगी की बात है.
*******
सब हैं संतुलित समय के संयमन के साथ,
मेरी दृष्टि में तो ये हँसी की बात है.
*******
राष्ट्रवाद में दिमाग़ के हैं पेचो-ख़म,

देश-भक्ति दिल की रोशनी की बात है.

**************

4 टिप्‍पणियां:

  1. 'अपने-अपने आसमान…'
    'सोचता हूँ जाके…'
    'उन कबूतरों के पर…'
    बहुत ख़ूब!
    और-
    'राष्ट्रवाद में दिमाग़…'
    गहरी सियासी बात इतनी बारीकी और नफ़ासत
    से
    कहना कोई आपसे सीखे।
    बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  2. अब तो शब्द भी कम पड़ने लगे हैं..दाद कहां से दूं
    मैं हूँ चुप, क्षितिज से दोस्ती की बात है.

    हर शेर नपा-तुला और भेदता हुआ गहराई में

    जवाब देंहटाएं