युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

गुरुवार, 20 नवंबर 2008

जुगनुओं सी चमकीली, छोटी-छोटी इच्छाएं.

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जुगनुओं सी चमकीली, छोटी-छोटी इच्छाएं. वह भी कब हुईं पूरी, आयीं ऐसी बाधाएं. ******* गाँव की नदी मुझसे, पूछती थी घर मेरा, मैं न कुछ बता पाया, ...
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रह गयीं बिछी आँखें, और तुम नहीं आये.

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रह गयीं बिछी आँखें, और तुम नहीं आये. मुज़महिल हुईं यादें, और तुम नहीं आये. ******* उसके मांग की अफ़्शां, चाँद की हथेली पर, रख के सो गयीं किरन...
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बुधवार, 19 नवंबर 2008

सूरदास के रूहानी नग़मे / शैलेश ज़ैदी [क्रमशः 9]

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[55] खेलत मैं को काकौ गुसैंयाँ. हरी हारे, जीते श्रीदामा, बरबस ही कत करत रिसैंयाँ. जाति-पांति हमते बड़ नाहीं, नाहीं बसत तुम्हारी छैंयाँ. अति...

कल्पना के सामने बन जायेगा मिथ्या यथार्थ.

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कल्पना के सामने बन जायेगा मिथ्या यथार्थ. रुक्मिणी कुछ भी नहीं हैं, आज हैं राधा यथार्थ. ******* सब की अपनी-अपनी ढपली, सब के अपने-अपने राग, को...
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मंगलवार, 18 नवंबर 2008

वतन की सरजमीं को माँ का दर्जा देते आये हैं.

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वतन की सरजमीं को माँ का दर्जा देते आये हैं. हम इसकी गोद में जो कुछ है अपना देते आये हैं. ******* जलाते हम नहीं लाशें कभी अपने अइज्ज़ा की, वतन...
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सोमवार, 17 नवंबर 2008

गिरफ़्तारी पे उसकी इस क़दर बेचैनियाँ क्यों हैं.

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गिरफ़्तारी पे उसकी इस क़दर बेचैनियाँ क्यों हैं. अभी मुजरिम वो साबित कब हुआ, नौहा-कुनाँ क्यों हैं. ******* न लेगा आपसे जब मशविरा तफ़तीश में कोई...
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गुरुवार, 13 नवंबर 2008

संकीर्णता विचारों की, जिनको भली लगे.

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संकीर्णता विचारों की, जिनको भली लगे. क्यों उनके साथ बैठने में अपना जी लगे. ******* आपस के भेद भाव से जो मुक्त हो गए. हर शब्द उनका, मिसरी की ...
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बुधवार, 12 नवंबर 2008

यहाँ आती है अंगनाई से कच्चे आम की खुशबू.

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यहाँ आती है अंगनाई से कच्चे आम की खुशबू. सुबह की तर्ह मोहक हो गई है शाम की खुशबू. ******* दुपहरी सर पे है सूरज भी है आवेश में शायद, नहीं पगड...
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जहाँ विचारों को अनुकूल हम नहीं पाते.

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जहाँ विचारों को अनुकूल हम नहीं पाते. वो बात कैसी भी हो, उसमें दम नहीं पाते. ******* विचार के लिए आधार चाहिए कुछ तो, ज़मीं हो खोखली, तो पाँ...
मंगलवार, 11 नवंबर 2008

जिस्म के ज़िन्दाँ में उम्रें क़ैद कर पाया है कौन.

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जिस्म के ज़िन्दाँ में उम्रें क़ैद कर पाया है कौन. दख्ल कुदरत के करिश्मों में भला देता है कौन. ******* चाँद पर आबाद हो इन्सां, उसे भी है पसंद, ...
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