जहाँ विचारों को अनुकूल हम नहीं पाते.
वो बात कैसी भी हो, उसमें दम नहीं पाते.
*******
विचार के लिए आधार चाहिए कुछ तो,
ज़मीं हो खोखली, तो पाँव जम नहीं पाते.
*******
वो भावनाएं ही क्या, जिनमें हो न कोई नमी,
वो दिल भी दिल है कोई, जिसमें ग़म नहीं पाते.
*******
सुना है स्वस्थ दिशाओं में बढ़ने वालों के,
क़दम जो उठ गए, ख़तरों से थम नहीं पाते.
*******
वो बात करते हो क्यों जो समय के साथ नहीं,
न घन चलाओ, जो लोहा गरम नहीं पाते.
*******
कोई भी घटना घटित हो, प्रभावहीन सी है,
अब ऐसी बातों से बच्चे सहम नहीं पाते.
*******
वो लिख रहे हैं, नहीं लिखना चाहते जिसको,
हम अपने हाथों में अपना क़लम नहीं पाते.
**************
युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें