युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

शुक्रवार, 15 अगस्त 2008

पसंदीदा नज़्में / शब्बीर हसन

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तुम्हारे शहर का बाशिंदा हूँ मैं भी तुम्हारे शहर का बाशिंदा हूँ यहीं मेरी माँ ने अन्तिम हिचकियाँ ली हैं यहीं मेरे पिता ने आंखों की कटोरियों म...
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पसंदीदा नज़्में / ज़ैदी जाफ़र रज़ा

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1. यज्ञ और हवन यज्ञ की आग पहले सुलगती थी रौशन हवन कुण्ड होते थे सारी फ़िज़ा ऊदो-अम्बर की खुशबू के हौज़े-मुक़द्दस में अशनान करती थी पाकीज़गी का ...
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पसंदीदा नज़्में / गुलज़ार

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18 मर्तबा फ़िल्म फेअर अवार्ड जीतने वाले गुलज़ार एक अच्छे शायर, एक कामयाब स्क्रिप्ट राइटर,एक बेमिसाल डाइरेक्टर और एक चुम्बकीय व्यक्तित्व के मा...
बुधवार, 13 अगस्त 2008

सूरदास के रूहानी नग़मे / शैलेश ज़ैदी [क्रमशः 4]

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[ 22 ] हरी बिन अपनौ को संसार. माया-लोभ-मोह हैं चांडे, काल-नदी की धार.. ज्यौं जन संगति होति नाव मैं, रहति न परसैं पार.. तैसैं धन-दारा, सुख-सं...
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मंगलवार, 12 अगस्त 2008

परवेज़ फ़ातिमा की दो ग़ज़लें

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[ 1 ] यकीं करो, न करो, है ये अख्तियार तुम्हें वफ़ा पे अपनी, नहीं ख़ुद भी एतबार तुम्हें दिलो-दमाग़ की तकरार से है कब फुर्सत किसी भी लमहा मयस्स...
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हिन्दी ग़ज़ल / शैलेश ज़ैदी

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चांदनी की ओट में श्वेताम्बरा आयी थी कल था ये शायद स्वप्न कोई अप्सरा आयी थी कल स्नेह पर संदेह उसके मैं करूँ, सम्भव नहीं, मेरे दुःख पर आँख उसक...
सोमवार, 11 अगस्त 2008

अब ये बेहतर है कि हम तोड़ दें सारे रिश्ते / ज़ैदी जाफ़र रज़ा

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[ 1 ] अब ये बेहतर है कि हम तोड़ दें सारे रिश्ते देर-पा होते नहीं प्यार में झूठे रिश्ते अपने हक़ में कोई मद्धम सा उजाला पाकर रास्ता अपना बदल ल...
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किसी ने पुकारा / ऐन ताबिश

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किसी ने पुकारा घनेरे सियह बादलों से अँधेरी सिसकती हुई रात के आंचलों से ख़मोशी में डूबे हुए सर्द एहसास के जंगलों से एक मज़बूत पुख्ता मकां के ...
रविवार, 10 अगस्त 2008

निदा फाज़ली की दो नज़्में

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1. फ़रिश्ते निकले हैं रौशनी के हुआ सवेरा ज़मीन पर फिर अदब से आकाश अपने सर को झुका रहा है कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं. नदी में स्नान कर के सूरज...
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सहारे / वामिक़ जौनपुरी

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पहली मई, यौमे-मज़दूर के तअल्लुक़ से बढे चलो बढे चलो यही निदाए-वक़्त है ये कायनात, ये ज़मीं निज़ामे-शम्स का नगीं ये कहकशां सा रास्ता, इसी पे गा...
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