रविवार, 10 अगस्त 2008

निदा फाज़ली की दो नज़्में

1. फ़रिश्ते निकले हैं रौशनी के
हुआ सवेरा
ज़मीन पर फिर अदब से आकाश
अपने सर को झुका रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं.

नदी में स्नान कर के सूरज
सुनहरी मलमल की पगड़ी बांधे
सड़क किनारे
खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा है.
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं

हवाएं सरसब्ज़ डालियों में
दुआओं के गीत गा रही हैं
महकते फूलों की लोरियां
सोते रास्तों को जगा रही हैं
घनेरा पीपल, गली के कोने से
हाथ अपना हिला रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं

फ़रिश्ते निकले हैं रोशनी के
हर एक रस्ता चमक रहा है
ये वक़्त वो है, ज़मीं का हर ज़र्रा
मां के दिल सा धड़क रहा है
पुरानी इक छत पे वक़्त बैठा
कबूतरों को उड़ा रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं

2. जो हुआ सो हुआ
उठके कपडे बदल
घर से बाहर निकल
जो हुआ सो हुआ.

जब तलक साँस है
भूक है प्यास है
ये ही इतिहास है.
रख के काँधे पे हल
खेत की ओर चल
जो हुआ सो हुआ

खून से तर-ब-तर
करके हर रहगुज़र
थक गए जानवर
लड़कियों की तरह
फिर से चूल्हे में जल
जो हुआ सो हुआ.

जो मरा क्यों मरा
जो जला क्यों जला
जो लुटा क्यों लुटा
मुद्दतों से हैं गुम
इन सवालों के हल.
जो हुआ सो हुआ

मंदिरों में भजन
मस्जिदों में अजाँ
आदमी है कहाँ
आदमी के लिए
एक ताज़ा ग़ज़ल
जो हुआ सो हुआ
******************

6 टिप्‍पणियां:

  1. निदा साहब की दोनों रचनाएँ बहुत खूबसूरत हैं. जितनी बार पढता हूँ, बहुत खुशी मिलती है. आपको धन्यवाद इन्हें यहाँ प्रस्तुत करने के लिए.

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  2. इन्हें यहाँ प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद .

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  3. निदा साहब की दोनों रचनाएँ बहुत खूबसूरत हैं. जितनी बार पढता हूँ, बहुत खुशी मिलती है. आपको धन्यवाद इन्हें यहाँ प्रस्तुत करने के लिए.

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  4. Logo ko jeene ka matlab samjhana hoga,Har ek ko har tarah ki sarhad se door lejana hoga.Ankhe kholo savera ho jayega app or hum isi tarah judte jayen karvan ban jayega.

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