सोमवार, 11 अगस्त 2008

अब ये बेहतर है कि हम तोड़ दें सारे रिश्ते / ज़ैदी जाफ़र रज़ा

[ 1 ]
अब ये बेहतर है कि हम तोड़ दें सारे रिश्ते
देर-पा होते नहीं प्यार में झूठे रिश्ते
अपने हक़ में कोई मद्धम सा उजाला पाकर
रास्ता अपना बदल लेते हैं कच्चे रिश्ते
कुछ भी हालात हों, हालात से होता क्या है
दिल भले टूटे, नहीं टूटते दिल के रिश्ते
थक के मैदानों से जाओ न पहाड़ों की तरफ़
जान लेवा हैं, चटानों के ये ऊंचे रिश्ते
जिन में गहराई मुहब्बत की मिलेगी तुम को
देखने में वो बहोत होते हैं सादे रिश्ते।
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3 टिप्‍पणियां:

  1. अपने हक़ में कोई मद्धम सा उजाला पाकर
    रास्ता अपना बदल लेते हैं कच्चे रिश्ते
    तकल्लुफ़ात की बातों से फ़ायदा क्या है
    जहाँ सुकूँ तुम्हें मिलता है, तुम चले जाओ
    बेहतरीन....बहुत उम्दा शेरों से सजी तीनो ग़ज़लें हैं...पढ़वाने का बहुत बहुत शुक्रिया....
    नीरज

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  2. डॉ0 परवेज़ फातिमा

    तीनों ही रचनायें बेहतरीन हैं। जो शेर खास पसंद आये उद्धरित कर रहा हूँ..

    अपने हक़ में कोई मद्धम सा उजाला पाकर
    रास्ता अपना बदल लेते हैं कच्चे रिश्ते

    जिन में गहराई मुहब्बत की मिलेगी तुम को
    देखने में वो बहोत होते हैं सादे रिश्ते

    पसंद आए तुम्हें जो भी रास्ता, चुन लो
    मैं तुमसे कोई भी वादा न अब कभी लूँगा

    मेरी सलीब है मैं ख़ुद इसे उठा लूँगा
    तुम्हें कुछ और भी करना है, तुम चले जाओ


    ***राजीव रंजन प्रसाद

    www.rajeevnhpc.blogspot.com
    www.kuhukakona.blogspot.com

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  3. अपने हक़ में कोई मद्धम सा उजाला पाकर
    रास्ता अपना बदल लेते हैं कच्चे रिश्ते

    -पढ़वाने का आप को बहुत शुक्रिया.

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