शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

हुआ है कैसा तग़ैयुर हवाएं जानती हैं

हुआ है कैसा तग़ैयुर हवाएं जानती हैं।
शिकस्ता ख़्वाबों की हालत फ़िज़ाएं जानती है॥

ये लड़कियाँ जो बदलती हैं सुबहोशाम लिबास,
ये ज़िन्दा रहने की सारी कलाएं जानती हैं॥

भरम बना रहे पानी का इन ज़मीनों पर,
बरस न पायेंगी हरगिज़ घटाएं जानती हैं॥

वो चान्द दूर से रखता है मुझपे गहरी निगाह,
ये दिल उसीका है उसकी शुआएं जानती हैं॥

तड़पते देखेंगी कैसे जिगर के टुकड़ों को,
जवान बेटों का ग़म क्या है माएं जानती है

ये बात-बात पे इठलाना और बल खाना,
तुम्हारे राज़ तुम्हारी अदाएं जानती हैं
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6 टिप्‍पणियां:

  1. तड़पते देखेंगी कैसे जिगर के टुकड़ों को,
    जवान बेटों का ग़म क्या है माएं जानती है
    inpanktiyon ne dil chhoo liya...waah bahut khoob....

    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  2. सुंदर रचना .....
    शुभकामनाएं...............

    http://rajdarbaar.blogspot.com

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  3. 'भरम बना रहे………'
    'वो चान्द दूर से……'
    बहुत ख़ूब!

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