किसी पल भी मुकर जायेगा क्या विशवास है उसका.
यही करता रहा है, ऐसा ही इतिहास है उसका.
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कभी जो अपना घर अनुशासनों में रख नहीं पाया,
वो कैसे बरतेगा हमसे, हमें आभास है उसका.
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उसे प्रारम्भ से आतंक में जीने की आदत है,
वही दुख-दर्द है उसका, वही उल्लास है उसका.
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हमें उससे जो सच पूछो तो बस इतनी शिकायत है.
किया है उसने जो कुछ भी, कोई एहसास है उसका.
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मैं हूँ आश्वस्त भी, निश्चिंत भी कल की नहीं पर्वा,
मुक़द्दर वेदना, पीड़ा, घुटन, संत्रास है उसका.
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चलो, उससे ही चलकर पूछते हैं, क्या इरादा है,
ये तैयारी है कैसी, कोई मकसद ख़ास है उसका.
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वो जो बातें भी करता है, कभी सीधी नहीं करता,
वो जो वक्तव्य देता है, स्वयं परिहास है उसका.
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उसीके हक में अच्छा है कि मिल-जुल कर रहे हमसे,
न पतझड़ है हमारा और न मधुमास है उसका,
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युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
वर्तमान परिपेक्ष में सटीक ग़ज़ल बहोत ही उम्दा लिखा है आपने ढेरो बधाई आपको .. अपने पचासवीं ग़ज़ल पे आपका स्नेह चाहूँगा ढेरो स्वागत के साथ.....
जवाब देंहटाएंअर्श
किसी पल भी मुकर जायेगा ऐसा ही इतिहास है उसका
जवाब देंहटाएंचलो, उससे ही चलकर पूछते हैं, क्या इरादा है,
ये तैयारी है कैसी, कोई मकसद ख़ास है उसका
बहुत ही खूबसूरत ख्याल हैं...कायल हो गए ......शायरी की गहराई आज देखी .....ऐसी खूबसूरत गजर के लिए बधाई।
वो जो बातें भी करता है, कभी सीधी नहीं करता,
जवाब देंहटाएंवो जो वक्तव्य देता है, स्वयं परिहास है उसका.
और..
चलो, उससे ही चलकर पूछते हैं, क्या इरादा है,
ये तैयारी है कैसी, कोई मकसद ख़ास है उसका.
...लगता है जैसे आज ही लिखी गयी हो,लेकिन कल का भी सच और आनेवाले कल का भी.
क्या खूब...
किताब की प्रिंट उपलब्ध नहीं है सुन कर मन क्षुब्ध हो गया.गज़ल का अराधक हूं,जो कहीं से एक प्रती मिल जाती तो बड़ी अनुकंपा होती...