ये है बाजारवादी तंत्र, जादू इसका गहरा है.
ये भीतर जो भी हो, बाहर सुनहरा ही सुनहरा है.
*******
चला जाता है बस अपनी ही धुन में होके बे-पर्वा,
किसी की कुछ नहीं सुनता, समय कानों से बहरा है.
*******
हमारी कोरी भावुकता, हमें कुछ दे न पायेगी,
हमारी राह में कुछ दूर तक जंगल हैं, सहरा है.
*******
मुहब्बत के किले में क़ैद करके मुझको वो खुश है,
जिधर भी देखता हूँ उसकी ही यादों का पहरा है.
*******
हमारा उसका समझौता,किसी सूरत नहीं होगा,
कभी वो बात कोई मानकर कब उसपे ठहरा है.
**************
युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
ये है बाजारवादी तंत्र, जादू इसका गहरा है....सटीक लिखा है।
जवाब देंहटाएं'ये भीतर जो भी हो बाहर सुनहरा ही सुनहरा है'कैसा सटीक चित्रण किया है 'मार्केट इकॉनॉमी' का! हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंमुहब्बत के किले में क़ैद करके मुझको वो खुश है,
जवाब देंहटाएंजिधर भी देखता हूँ उसकी ही यादों का पहरा है.
बहोत ही सटीक लिखा है आपने बहोत खूब ढेरो बधाई आपको
अर्श