अब समाचार भी लगते हैं मनोरंजन से.
हर सुबह लोग इन्हें पढ़ते हैं हलकेपन से.
*******
वो नहीं घर में, कहूँ किससे बुला दे उनको,
हूक सी उठती है तंग आ गई इस सावन से.
*******
लकडियाँ भीग गई हैं मेरी आंखों की तरह,
आग की गंध भी आती नहीं अब ईंधन से.
*******
टपके आंसू तो कुछ ऐसा मुझे आभास हुआ,
बूँद पानी की गिरी गर्म तवे पर छन से.
*******
मन की धरती के गहन गर्भ से निकले आंसू,
गंगा जल की ही तरह मुझको लगें पावन से.
*******
चूड़ियाँ तोड़ दीं वैधव्य ने कर्कश होकर,
गूंजते गीत विलापों के सुने कंगन से.
*******
ठण्ड ऐसी है कि निकलूँ तो ठिठुरने का है डर,
धूप को भी है बहुत बैर मेरे आँगन से.
**************
युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
ठण्ड ऐसी है कि निकलूँ तो ठिठुरने का है डर,
जवाब देंहटाएंधूप को भी है बहुत बैर मेरे आँगन से.
--वाह!! बहुत जबरदस्त!!