पानी, मिटटी, आग, हवा सब, जिस्म में यकजा-यकजा हैं.
इनके साथ में रहकर भी हम, इनसे अलग क्यों तनहा हैं.
*******
साहिल से कुछ लोग बजाहिर, देख रहे हैं दरया को,
ज़हनों के भटकाव में लेकिन, फिरते सहरा-सहरा हैं.
*******
दुनिया से शिकवे भी बहोत हैं, दुनिया की चाहत भी है,
हिर्सो-हवस के सारे बन्दे, दुनिया के ज़ेरे-पा हैं.
*******
उसके बाम पे चाँद निकलते, देखा तो सबने ही था,
कुछ दीवाने ऐसे भी हैं, अबतक महवे-नज़ारा हैं.
*******
पाँव में छाले, दिल में तूफाँ, राह कटे तो कैसे कटे,
चलते रहना मेरा मुक़द्दर, हौसले हर दम ताज़ा हैं.
*******
कोई शै भी दूर से देखो, बेहद अच्छी लगती है,
पास आने पर नुक्स हैं जितने, आंखों से बे-परदा हैं.
**************
युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं