गुले-ताज़ा समझकर तितलियाँ बेचैन करती हैं.
उसे ख़्वाबों में उसकी खूबियाँ बेचैन करती हैं.
कोई भी आँख हो आंसू छलक जाते हैं पलकों पर,
किसी की आहें जब बनकर धुवां बेचैन करती हैं.
सुकूँ घर से निकलकर भी मयस्सर कब हुआ मुझको,
कहीं शिकवे, कहीं मायूसियां बेचैन करती हैं.
दिलों में अब सितम का आसमानों के नहीं खदशा,
ज़मीनों की चमकती बिजलियाँ बेचैन करती हैं.
ख़बर ये है उसे भी रात को नींदें नहीं आतीं,
सुना हैं उसको भी तन्हाइयां बेचैन करती हैं.
नहीं करती कभी कम चाँदनी गुस्ताखियाँ अपनी,
मेरी रातों को उसकी शोखियाँ बेचैन करती हैं.
सभी दीवानगी में दौड़ते हैं हुस्न के पीछे,
सभी को हुस्न की रानाइयां बेचैन करती है.
मैं साहिल से समंदर का नज़ारा देख कब पाया,
मुझे मौजों से उलझी कश्तियाँ बेचैन करती हैं.
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युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.
बेहतरीन रचना। बेचैनियां दिल को छू गईं-
जवाब देंहटाएंख़बर ये है उसे भी रात को नींदें नहीं आतीं,
सुना हैं उसको भी तन्हाइयां बेचैन करती हैं.
कुछ धीरज जरूरी होता है
जवाब देंहटाएंखलाओं से निबटने के लिए
खला जब मौत की रची हो
वक्त को गुजरने देना चाहिए
यही किया मैंने
गो वक्त चींटी की रफ्तार से गुजरा
दिल पर हथौड़े, गिराता
बहुत सुंदर ,,बेहतरीन रचना।
मैं साहिल से समंदर का नज़ारा देख कब पाया,
जवाब देंहटाएंमुझे मौजों से उलझी कश्तियाँ बेचैन करती हैं.
bahut khoob
एक अच्छी गजल पढ़वाने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवीनस केसरी
ख़बर ये है उसे भी रात को नींदें नहीं आतीं,
जवाब देंहटाएंसुना हैं उसको भी तन्हाइयां बेचैन करती हैं.
--बहुत खूब..आभार!