सोमवार, 6 अक्टूबर 2008

गुले-ताज़ा समझकर तितलियाँ

गुले-ताज़ा समझकर तितलियाँ बेचैन करती हैं.
उसे ख़्वाबों में उसकी खूबियाँ बेचैन करती हैं.
कोई भी आँख हो आंसू छलक जाते हैं पलकों पर,
किसी की आहें जब बनकर धुवां बेचैन करती हैं.
सुकूँ घर से निकलकर भी मयस्सर कब हुआ मुझको,
कहीं शिकवे, कहीं मायूसियां बेचैन करती हैं.
दिलों में अब सितम का आसमानों के नहीं खदशा,
ज़मीनों की चमकती बिजलियाँ बेचैन करती हैं.
ख़बर ये है उसे भी रात को नींदें नहीं आतीं,
सुना हैं उसको भी तन्हाइयां बेचैन करती हैं.
नहीं करती कभी कम चाँदनी गुस्ताखियाँ अपनी,
मेरी रातों को उसकी शोखियाँ बेचैन करती हैं.
सभी दीवानगी में दौड़ते हैं हुस्न के पीछे,
सभी को हुस्न की रानाइयां बेचैन करती है.
मैं साहिल से समंदर का नज़ारा देख कब पाया,
मुझे मौजों से उलझी कश्तियाँ बेचैन करती हैं.
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5 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन रचना। बेचैनियां दिल को छू गईं-
    ख़बर ये है उसे भी रात को नींदें नहीं आतीं,
    सुना हैं उसको भी तन्हाइयां बेचैन करती हैं.

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  2. कुछ धीरज जरूरी होता है
    खलाओं से निबटने के लिए
    खला जब मौत की रची हो
    वक्त को गुजरने देना चाहिए
    यही किया मैंने
    गो वक्त चींटी की रफ्तार से गुजरा
    दिल पर हथौड़े, गिराता
    बहुत सुंदर ,,बेहतरीन रचना।

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  3. मैं साहिल से समंदर का नज़ारा देख कब पाया,
    मुझे मौजों से उलझी कश्तियाँ बेचैन करती हैं.

    bahut khoob

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  4. एक अच्छी गजल पढ़वाने के लिए धन्यवाद


    वीनस केसरी

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  5. ख़बर ये है उसे भी रात को नींदें नहीं आतीं,
    सुना हैं उसको भी तन्हाइयां बेचैन करती हैं.


    --बहुत खूब..आभार!

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