सोमवार, 6 अक्टूबर 2008

दूर तक छाये थे बादल / क़तील शफ़ाई

दूर तक छाये थे बादल, पर कहीं साया न था.
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था.
क्या मिला आख़िर तुझे सायों के पीछे भाग कर,
ऐ दिले-नादाँ, तुझे क्या हमने समझाया न था.
उफ़ ये सन्नाटा की आहट तक न हो जिसमें मुखिल,
ज़िन्दगी में इस कदर जमने सुकूँ पाया न था.
खूब रोये छुपके घर की चारदीवारी में हम,
हाले-दिल कहने के क़ाबिल कोई हमसाया न था.
हो गए कल्लाश जबसे आस की दौलत लुटी,
पास अपने और तो कोई भी सरमाया न था.
सिर्फ़ खुशबू की कमी थी गौर के क़ाबिल 'क़तील',
वरना गुलशन में कोई भी फूल मुरझाया न था.
***************************

6 टिप्‍पणियां:

  1. ऐ दिले-नादाँ, तुझे क्या हमने समझाया न था.
    ' bhut sunder gazal, or is line ne bhut impress kiya hai, magar sach ye bhee kee lakh semjao, ye dil mantaa hee khan hai'

    regards

    जवाब देंहटाएं
  2. Dr Parvez
    dil ko choo lene wali gazal hai.
    aage bhee asi rachnaayen padne ko milti rahengi, umid hai.

    जवाब देंहटाएं
  3. दूर तक छाये थे बादल, पर कहीं साया न था.
    इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था.

    हमारी न्गाज़ल का इक शेअर है-

    'फ़िरदौस' भीगने की तमन्ना ही रह गई
    बादल मेरे शहर से न जाने किधर गए

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत आभार इस उम्दा प्रस्तुति का!!

    जवाब देंहटाएं
  5. सिर्फ़ खुशबू की कमी थी गौर के क़ाबिल 'क़तील',
    वरना गुलशन में कोई भी फूल मुरझाया न था.
    bahut sunder
    dil ki bat
    regards

    जवाब देंहटाएं