युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش

युग-विमर्श हिन्दी उर्दू की साहित्यिक विचारधारा के विभिन्न आयामों को परस्पर जोड़ने और उन्हें एक सर्जनात्मक दिशा देने का प्रयास है.इसमें युवा पीढ़ी की विशेष भूमिका अपेक्षित है.आप अपनी सशक्त रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज सकते हैं.

शुक्रवार, 24 जून 2011

रूढिवादिता की क़ब्र पर मुस्लिम समाज का मर्सिया : नासिरा शर्मा की कहानियाँ [2]

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रूढिवादिता की क़ब्र पर मुस्लिम समाज का मर्सिया रूढ़िवादिता अपनी प्रकृति से ही संकरी और पथरीली है और उस की लपेट में आया हुआ हर व्यक्ति पूरी तरह...
शनिवार, 11 जून 2011

इश्क़ के धरातल पर मनुष्य होने की सम्पूर्ण गरिमा : नासिरा शर्मा की कहानियाँ [ 1 ]

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[1 ] इश्क़ के धरातल पर मनुष्य होने की सम्पूर्ण गरिमा इश्क, मुहब्बत, प्यार, लगाव, तअल्लुक्, उल्फ़त इत्यादि कितने ही ऐसे शब्द हैं जिनके सहारे...
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शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

दर्द या दर्द का कोई पहलू नहीँ

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दर्द या दर्द का कोई पहलू नहीँ। देवताओं की आँखों में आँसू नहीं॥ लोग मिलते हैं अब भी बड़े जोश से, पर ख़ुलूसो-मुहब्बत की ख़ुश्बू नहीं॥ जैसी मरज...
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बुधवार, 30 जून 2010

ज़बानें तितलियोँ की आज भी समझता हूं

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ज़बानें तितलियोँ की आज भी समझता हूं। गुलों की उनसे है क्यों बेरुख़ी समझता हूं॥ मैं अब भी बादलों से हमकलाम रहता हूं, के उनके दर्द की हर बेकली...
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रविवार, 27 जून 2010

जिसने अपयश की चिन्ता कभी की

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जिसने अपयश की चिन्ता कभी की। प्यार में उसने सौदागरी की॥ जबसे उसने प्रशंसा मेरी की। कोई सीमा नहीं बेकली की॥ घर मेरा धूएं से भर गया है, गीली ...
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शनिवार, 26 जून 2010

हज़रत अली / जन्म दिवस [26 जून 2010 / तेरह रजब 1431 हि0]पर विशेष

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दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जिन्हेँ उनकी ज़िन्दगी में भी और ज़िन्दगी के बाद भी सर-आँखों पर बिठाया जाय और एक अच्छी ज़िन्दगी गुज़ारने...
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शुक्रवार, 25 जून 2010

कैसे मुम्किन है मसाएल से न टकराए हयात्

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कैसे मुम्किन है मसाएल से न टकराए हयात्। कौन चाहेगा ख़मोशी से गुज़र जाये हयात् ॥ कोई तूफ़ान, कोई ज़्ल्ज़ला, कोई सैलाब, ज़िन्दगी में न अगर हो...
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गुरुवार, 24 जून 2010

खो गया मैं ये किस कल्पना में

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खो गया मैं ये किस कल्पना में। चाँद ही चाँद हैं हर दिशा में॥ मैं अमावस से सुबहें तराशूँ, घोल दो चाँदनी तुम हवा में॥ मैं पिघलता रहूं मोम बनकर...
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बुधवार, 23 जून 2010

उनवाने-गुफ़्तुगूए-दिले-दोस्ताँ न हों

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उनवाने-गुफ़्तुगूए-दिले-दोस्ताँ न हों। जीना भी हो मुहाल जो ख़ुश-फ़ह्मियाँ न हों॥ कुछ तल्ख़ियाँ भी होती हैँ शायद बहोत लतीफ़, क्या लुत्फ़ है सफ...
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ख़्वाहिशें और तमन्नाएं सभी रखते हैं

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ख़्वाहिशें और तमन्नाएं सभी रखते हैं। हम तो हर हाल में जीने की ख़ुशी रखते हैं॥ नुक्ताचीनी की बहरहाल सज़ा मिलती है, वो सम्झदार हैं जो होँटोँ क...
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